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कृषि पारिस्थितिकी की पहल से आजीविका संवर्धन और खाद्य संप्रभुता

देहरादून. ‘’समूचा हिमालय स्वयं में कृषि-पारिस्थितिकी का दर्पण है. इस विराट भोजन सभ्यता को जैव विविधता के संरक्षण से ही सफल बनाया जा सकता है. यह सफलता किसानों की आजीविका में सतत वृद्धि के साथ ही भोजन संप्रभुता की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगी.’’ यह कहना था जैवविविधता प्राधिकरण (एनबीए) के पूर्व अध्यक्ष और डब्ल्यूआईआई के निदेशक डॉ. वी.बी. माथुर का। वह यहाँ सहारनपुर रोड स्थित होटल ग्रैंड में ‘’कृषि पारिस्थितिकी पर उत्तराखंड के हितधारकों की बैठक’’ में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
इस अवसर पर उपस्थित वैज्ञानिकों, प्रशासकों, किसानों और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अपने बहुमूल्य अनुभव और विचार साझा किये।
डॉ. वी.बी. माथुर का कहना था कि आज असुरक्षा अपने विकराल रूप में सामने आ रही है, इस समस्या का निदान कृषि जैव विविधता को बचाने में है।उन्होंने कहा कि हिमालयी कृषि उत्पादों की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन उसी अनुपात में यहाँ खेती की जीवटता गिर रही है। इस विडम्बना से निपटने के लिए किसान, वैज्ञानिक, अधिकारी और नीति निर्माताओं को आत्मीयता के साथ आगे आना होगा और फसलोत्पादन की लागत को कम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें नेपाल तथा भूटान जैसे छोटे देशों से से हिमालयी पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण को सीखने की आवश्यकता है।
डॉ. ईश्वरी एस. बिष्ट, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, एनबीपीजीआर आरएस भोवाली, ने उत्तराखंड में खाद्य प्रणालियों का कृषि-पारिस्थितिक परिवर्तन, प्रमुख चुनौतियाँ और अवसर पर बात रखी। उन्होंने कहा कि किसान फसलों के उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण और उपभोग तक सबसे अच्छा ज्ञान रखता है। लेकिन कृषि परिस्थितिकी की इस आवश्यक प्रक्रिया में कई बाधाओं के कारण उत्तराखंड के पहाड़ी आँचल की खेती बड़ी चुनौतियों के गुजर रही है। उन्होंने उत्तराखंड मध्य हिमालय के पौड़ी, अल्मोड़ा चम्पावत और बागेश्वर के बंजर होते परिदृश्य पर ध्यान आकर्षण किया. और कृषि नीति को व्यावहारिक बनाकर प्रयोगशाला से खेत और उत्पादन से बाजार की दूरी को कम करने की आवश्यकता पर बल दिया।
अलाइंस ऑफ़ बायोडायवर्सिटी इंटरनेशनल के लिए भारतीय प्रतिनिथि डॉ जे. सी. राणा, ने हिमालयन एग्रो-इकोलॉजिकल इनिशिएटिव (HAI) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया, ‘’ हिमालयन एग्रोइकोलॉजी इनिशिएटिव (HAI) एक ऐसा रणनीतिक प्रयास है जो सरकारों के साथ मिलकर और हितधारकों के एक व्यापक समूह के समर्थन से काम करता है। ताकि उन बहु-हितधारक प्रक्रियाओं को सम्बल दिया जा सके जो कृषि-पारिस्थितिकी आधारित खाद्य-प्रणालियों के रोडमैप को विकसित, निर्मित और कार्यान्वित करने में सहायता करती है। इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य तीन हिमालयी देशों (भारत, नेपाल और भूटान) की आजीविका और उसकी स्थिरता में सुधार लाने के साथ किसानों, किसान उत्पादक संगठनों एवं अन्य प्रमुख हितधारकों को सशक्त बनाना है, ताकि वे जैविक/ प्राकृतिक कृषि, खाद्य-प्रसंस्करण और उपभोग का समर्थन करने वाली सार्वजनिक नीतियों का बेहतर लाभ उठा सकें।
सतत कृषि एवं खाद्य प्रणाली के लिए हिमालयन एग्रोइकोलॉजीइनिशिएटिव के अंतर्गत प्रो. डॉ. वीर सिंह, प्रोफेसर एमेरिटस, जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर ने ‘कृषि पारिस्थितिकी से संबंधित नीतियों, प्रमुख चिंताओं और क्षेत्रीय स्थिति पर प्रकाश डालने वाले प्रमुख मुद्दों पर बात रखी।
डॉ. राकेश मैखुरी, (प्रो. एवं अध्यक्ष पर्यावरण विज्ञान विभाग, एचएन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल ) ने ‘’हिमालयी कृषि पारिस्थितिकी और संबंधित पहलुओं पर अनुसंधान एवं विकास के लिए रोडमैप’ पर बात रखी। उन्होंने कहा कि निशुल्क राशन व्यवस्था भी युवाओं का खेती से मोहभंग का एक बड़ा कारण है। उन्होंने राज्य की नीति को युवा केन्द्रित बनाने पर जोर दिया। और मानव संसाधनों के विकास से हिमालयी क्षेत्र में कृषि परक रोजगार उत्त्पन्न करने की सलाह दी।
सुश्री बिनीता शाह, अध्यक्ष सुपा बायोटेक ने ‘’सतत कृषि कार्यक्रम, राज्य में जमीनी स्तर की पहल, कृषि-पारिस्थितिकी के प्रबंधन में प्रमुख बाधाओं और उनसे पड़ने वाले प्रभाव’’ विषय पर भावपूर्ण बात रखी. उन्होंने कहा कि पहाड़ के लोगों की कर्मठता, सरलता और जीवटता यहाँ की पारिस्थितिकी और उससे प्राप्त श्री अन्न से है। उन्होंने सीमांत गाँवों के बची-खुची कृषि विविधता पर प्रस्तुति दी और उसको बचाने तथा आगे बढाने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमें अपनी जमीन को वहां की कृषि पारिस्थिकी के अनुसार सदुपयोग करने हेतु नीति निर्मित करनी चाहिए।
डॉ. ए.के. उपाध्याय, संयुक्त निदेशक-कृषि ने उत्तराखंड में जैविक खेती/प्राकृतिक खेती/कृषि विकास के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं, चुनौतियों और संभावनाओं पर बात रखी. उन्होंने जैविक खेती को आगे बढ़ाने, उसे प्रमाणीकरण से जोड़ने हेतु सरकार की योजनाओं पर जानकारी दी।
आजीविका कार्यक्रमों से जुड़े श्री कैलाश भट्ट ने क्षेत्र में अनुभव, चुनौती और अवसर और अवसर पर प्रकाश डाला. उन्होंने ग्रामीण उद्यम वेग परियोजना के माध्यम से पहाड़ी उत्पादों के प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर बात रखी। इस तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. जी.एस. रावत, प्रोफेसर एमेरिटस, यूसीओएसटी, पूर्व निदेशक और डीन डब्ल्यूआईआई ने की।
द्वितीय सत्र सामूहिक चर्चा पर आधारित रहा. तीन समूहों में संवाद के आधार पर यह सत्र संपन्न हुआ. प्रथम समूह का नेतृत्व श्री पवन कुमार, सीजीएम, पतंजलि आर्गेनिक रिसर्च इंस्टिट्यूट, हरिद्वार ने किया. उनकी थीम थी विभिन्न विभागों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी अधिकारियों पर आधारित रही।
द्वितीय समूह में श्रमयोग के श्री अजय जोशी के नेतृत्व में ‘गैर सरकारी संगठन, सीबीओ, उद्योगों के प्रतिनिधि’’ पर आधारित था।
तृतीय समूह का संचालन डॉ. प्रदीप मेहता राज्य प्रमुख यूएनडीपी के नेतृत्व में ‘’फेडरेशन/प्रगतिशील किसान/एफपीओ’’ विषयों पर संपन्न हुआ।
समापन सत्र में तीनों समूहों ने अपनी वार्ता का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया।
डॉ. मनोज कुमार पंत एसीईओ, सीपीपीजी, उत्तराखंड सरकार ने “उत्तराखंड राज्य कृषि नीतियां और योजनाएं: चुनौतियां और अवसर” पर प्रकाश डाला.
हिमालयन एग्रोइकोलॉजी इनिशिएटिव (HAI) के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कुल 70 प्रतिभागी उपथित थे। कार्यक्रम कुल तीन सत्रों में संपन्न हुआ- सत्रारंभ में कंसलटेंट, HAI,उत्तराखण्ड, डॉ. विनोद कुमार भट्ट ने सभी का स्वागत किया। डॉ. अनिल जोशी सलाहकार, आईआरडी फाउंडेशन ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस कार्यक्रम का संचालन मृदा वैज्ञानिक डॉ. हरिराज सिंह ने किया ।
इस कार्यशाला में स्पेक्स के अध्यक्ष डॉ बृजमोहन शर्मा, श्रमयोग से अध्यक्ष अजय जोशी, बीज बचाव आंदोलन के विजय जरदारी, ग्रासरूट अवेयरनेस एंड टेक्निकल इंस्टीट्यूट फॉर सोसायटी के सचिव नीरज उनियाल, डॉ आर के मुखर्जी नवप्रभात नेगी, मंगेश कुमार, दिनेश सेमवाल आदि उपस्थित रहे।

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