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भारतीय रेलवे- पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित      

ए.के.खंडेलवाल
भारतीय रेलवे में सुरक्षा पहले से कहीं अधिक बेहतर हो गई है, जिसका श्रेय पिछले दशक में की गई योजनाबद्ध पहलों को दिया जा सकता है। भारतीय रेलवे दुनिया का सबसे व्यस्त यात्री परिवहन नेटवर्क है और रेल-यात्री परिवहन में इसका विश्व में पहला स्थान है। रेलवे हर साल 1 लाख करोड़ यात्री किलोमीटर (पीकेएम) से अधिक की दूरी तय करती है और 685 करोड़ से अधिक यात्रियों को सफर कराती है। यह आँकड़ा चीन से भी काफी बड़ा है, जहाँ अपने विशाल नेटवर्क और आबादी के बावजूद लगभग 300 करोड़ यात्री ही रेल का उपयोग करते हैं।

सुरक्षा में इस उल्लेखनीय सुधार का प्रमाण दुर्घटनाओं की घटती संख्या से मिलता है। जहाँ 2000-01 में 473 बड़ी रेल दुर्घटनाएँ हुई थीं, वहीं 2023-24 में यह संख्या घटकर केवल 40 रह गई है। यह गिरावट ट्रैक सुधार, मानव रहित लेवल क्रॉसिंग को हटाने, पुलों की स्थिति की नियमित निगरानी और डिजिटल तकनीक के प्रयोग से संभव हुई है।

रेलवे के सुरक्षा प्रयासों को यात्री और पटरियों की लंबाई के आधार पर और भी सराहा जा सकता है। प्रतिदिन 2 करोड़ से अधिक लोग 70,000 किलोमीटर लंबे नेटवर्क पर यात्रा करते हैं। त्यौहारों के समय यह संख्या 3 करोड़ तक पहुँच जाती है। इसका मतलब है कि भारत में प्रतिदिन लगभग 2त्न लोग सुरक्षित रूप से रेल से सफर करते हैं, जबकि चीन में यह आँकड़ा 0.58त्न और अमेरिका में मात्र 0.09% है।

भारतीय रेलवे के लिए यात्रियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। यह 2023-24 में सुरक्षा से जुड़ी परियोजनाओं में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से स्पष्ट होता है, और चालू वित्त वर्ष में इससे भी अधिक खर्च करने की योजना है। इसका उद्देश्य रेलों, पुलों, पटरियों और संकेत प्रणालियों के रखरखाव में सुधार करना है। साथ ही, ओवर- और अंडर-ब्रिज के निर्माण के माध्यम से पटरियों के निकट की सडक़ सुरक्षा में भी सुधार किया जाएगा।

रेलवे सुरक्षा प्रदर्शन का एक प्रमुख सूचकांक ‘प्रति दस लाख ट्रेन किलोमीटर पर दुर्घटना की संख्या’ (एपीएमटीके) है, जो 2000-01 में 0.65 से घटकर 2023-24 में 0.03 पर आ गया है। यह सुधार अत्याधुनिक तरीकों और उन्नत तकनीकों के उपयोग के कारण संभव हुआ है, जैसे कि बेहतर पटरी रखरखाव, पटरी दोषों का पता लगाने में सुधार, रेल वेल्ड विफलताओं को रोकना और मानवीय त्रुटियों को कम करना। पटरी रखरखाव में सुधार के लिए आधुनिक मशीनों की तैनाती में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जहाँ 2013-14 में केवल 700 मशीनें उपयोग में थीं, वहीं अब यह संख्या बढक़र 1,667 हो गई है। इसके अतिरिक्त, परिसंपत्ति की विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए पूरे नेटवर्क में रेल ग्राइंडिंग का भी उपयोग किया जा रहा है। जिससे पटरियों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है। इसके साथ ही,उपद्रवी गतिविधियों, पटरियों से छेड़छाड़ और पटरियों पर अवरोध वस्तुओं के कारण होने वाले जोखिमों से निपटने के लिए नियमित गश्त की जाती है।

यात्रियों की सुरक्षा से आगे बढक़र, रेलवे अब वन्यजीव और पशुधन की सुरक्षा पर भी ध्यान दे रही है। 2024-25 तक 6,433 किलोमीटर रेलवे ट्रैक के किनारे बाड़ लगाने का लक्ष्य है, जिसमें से अगस्त 2024 तक 1,396 किलोमीटर पर काम पूरा कर लिया गया है। इससे मवेशियों के साथ टकराव की घटनाओं में कमी आएगी।
इन परिणामों को बनाए रखने और सुधार करने के लिए भारतीय रेलवे ने तकनीकी कार्यक्रमों और लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अपनाया है। इस पहल के तहत लोकोपायलटों को कोहरे वाले क्षेत्रों में परिचालन में सहायता के लिए जीपीएस-आधारित फॉग-पास डिवाइसेस की संख्या में वृद्धि की गई है, जो 2014-15 में केवल 90 थी और अब बढक़र 21,742 हो गई है। लोकोपायलटों की सतर्कता बढ़ाने के लिए सभी लोकोमोटिव में सतर्कता नियंत्रण उपकरण (वीसीडी) लगाए गए हैं, जिनकी संख्या 2013-14 में 10,000 से बढक़र अब 16,021 हो चुकी है। सुरक्षा उपायों के अंतर्गत, बड़ी पटरी (ब्रॉड-गेज) मार्गों पर स्थित 6,637 स्टेशनों में से 6,575 स्टेशनों पर पैनल इंटरलॉकिंग, रूट रिले इंटरलॉकिंग और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग जैसी उन्नत संकेत प्रणालियाँ स्थापित की गई हैं।

लोकोपायलटों की दक्षता को बेहतर बनाने के लिए ड्राइविंग कौशल और प्रतिक्रिया समय में सुधार के उद्देश्य से सिम्युलेटर-आधारित प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जो क्षेत्रीय अनुभव का अनुकरण करता है। अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को अग्निशमन और अग्निशामक यंत्रों के उपयोग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। 2023-24 के दौरान 6 लाख से अधिक रेलवे कर्मचारियों ने प्रारंभिक, प्रगति-उन्मुख, पुन: अभ्यास और विशिष्ट जैसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त किए हैं।

यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोत्तम प्राथमिकता देते हुए, एलएचबी कोचों पर भी विशेष ध्यान दिया गया है, जो बेहतर दुर्घटना-रोकथाम सुविधाओं से लैस हैं। इन कोचों का डिज़ाइन इस तरह किया गया है कि यह रेल के पटरी से उतरने और यात्रियों के घायल होने की संभावना को कम करता है। टक्कर के दौरान एक-दूसरे पर चढऩे से बचने के लिए इन्हें इस प्रकार से बनाया गया है कि ये 160 किलोमीटर प्रति घंटे की गति पर भी सुरक्षित तरीके से परिचालित हो सकें। इसकी उत्पादन संख्या में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। 2023-24 में 4,977 एलएचबी कोच बनाए गए हैं, जो 2013-14 के 2,467 से दोगुने से भी अधिक हैं।

इन सभी प्रयासों से भारतीय रेलवे पहले से कहीं अधिक सुरक्षित हो गई है। यात्री सुरक्षा और रेलवे में सुधार की दिशा में निरंतर प्रयास इसे एक सुरक्षित और विश्वसनीय परिवहन विकल्प बनाते हैं।

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