Breaking News
उच्च शिक्षा में 108 असिस्टेंट प्रोफेसर को जल्द मिलेगी तैनाती
सूचना विभाग शासन ,जनता और मीडिया के बीच सेतु का कार्य करता है- संयुक्त निदेशक
नवनियुक्त 1094 कनिष्ठ अभियन्ताओं को मिले नियुक्ति पत्र
सुप्रीम कोर्ट का यूट्यूब चैनल हुआ हैक, अपलोड किया यह वीडियो
कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने सड़क पर झाडू लगाकर दिया स्वच्छता का संदेश 
ज्योतिर्मठ पर मंडराने लगा भूस्खलन का खतरा, विष्णुप्रयाग की तरफ से हो रहा तेजी से भूस्खलन 
बीकेटीसी के सीईओ ने यात्रा व्यवस्थाओं का किया निरीक्षण 
ग्राम पंचायत स्तर पर दी जाएगी नए आपराधिक कानूनों की जानकारी
जीभ से कैसे पता चलती है बीमारी, आप भी शीशे में देखकर लगा सकते हैं पता

दोनों देशों ने कुछ लचीला रुख अपनाया

डॉ. दिलीप चौबे
भारत-चीन संबंधों को लेकर कूटनीतिक जगत में आजकल काफी चर्चा है। गलवान घाटी में हुए घटनाक्रम के बाद पिछले चार वर्षो में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तैनाती जारी रही तथा कूटनीतिक नोकझोंक भी चलती रही। विवाद के कुछ क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी हुई लेकिन अन्य मामलों में प्रगति नहीं हुई। बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में दोनों देशों ने कुछ लचीला रुख अपनाया है जिससे आशा बंधती है कि द्विपक्षीय संबंध पटरी पर आ सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नई सरकार देश में रोजगार सृजन और उत्पादन गतिविधियां बढ़ाने पर विशेष जोर दे रही है। इसमें चीन की भूमिका हो सकती है। सीमा विवाद के बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी संकेत दिया है कि भारत चीन से निवेश का इच्छुक है। इसे सरकार की नीति में बदलाव कहा जा सकता है। वह घरेलू और विदेशी मोच्रे पर नई परिस्थितियों का तकाजा भी हो सकता है।

रूस की ओर से भारत चीन संबंधों को सामान्य बनाने के लिए लगातार कोशिश होती रही हैं। रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव राजनीति त्रिगुट (रूस-भारत-चीन) को सक्रिय बनाने की कोशिश करते रहे हैं। रूस-भारत-चीन (रिक) प्रक्रिया के तहत तीनों देश पूर्व में विचार-विमर्श करते रहे। गलवान घटनाक्रम के बाद यह प्रक्रिया बंद हो गई थी। अब इसे पुनर्जीवित करने की कोशिश हो रही है। रूस तो यह भी चाहता है कि आगामी महीनों में वहां आयोजित होने वाली ब्रिक्स शिखर वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता आयोजित हो। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल में अपनी लाओस यात्रा के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी से विचार-विमर्श किया था।

संभव है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी के बीच शिखर वार्ता आयोजित करने पर चर्चा हुई हो। बहुत संभव है कि शिखर वार्ता के लिए आवश्यक माहौल बनाने के सिलसिले में दोनों देश सीमाओं से सैनिक पीछे हटाने का फैसला कर लें। यदि ऐसा होता है तो शिखर वार्ता के पक्ष में जनमत अनुकूल रहेगा। विदेश मंत्री जयशंकर यात्रा के अगले चरण में जापान में क्वाड विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। क्वाड की ऐसी बैठक काफी समय बाद हो रही है। कारण स्पष्ट है। अमेरिका और क्वाड के  अन्य सदस्यगण यह जानते हैं कि चीन के साथ संघर्ष की स्थिति में भारत इसमें भागीदार नहीं बनेगा। विकल्प के रूप में अमेरिका ने ऑक्स (आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) के रूप में नया गुट तैयार किया है। इसी के साथ ही जापान, दक्षिण कोरिया और फिलिपींस के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया जा रहा है।

जापान के प्रधानमंत्री फुजियो किशिदा तो एशिया में सैन्य संगठन नाटो जैसी सुरक्षा व्यवस्था कायम किए जाने के हिमायती हैं। कुछ दिन पहले रूस और चीन के बमवषर्क युद्ध विमानों ने अमेरिका के अलास्का प्रांत के पास उड़ान भरी। इन पर निगरानी रखने के लिए अमेरिका और कनाडा के युद्धक विमानों ने भी उड़ान भरी। यह घटनाक्रम अमेरिका के खिलाफ रूस और चीन की सैन्य लामबंदी का द्योतक है। हाल में रूस ने उत्तर कोरिया के साथ सैन्य समझौता किया है जो दक्षिण कोरिया और जापान के लिए सीधी चुनौती है।

एशिया में बदलते हुए इस परिदृश्य ने भारत की विदेश नीति के सामने बड़ी चुनौती है। भारत और अमेरिका के संबंधों के बीच खटास आने से इसमें एक नया आयाम जुड़ गया है। यह विडंबना है कि ऐसा उस समय हो रहा है जब अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दावेदारी में भारतीय मूल की कमला हैरिस अग्रणी है। अमेरिका के राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में भारतीय मूल के लोगों का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। यह द्विपक्षीय संबंधों को सकारात्मक बनाए रखने के लिए सहायक सिद्ध होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top