Breaking News
आपका मन तय नही करेगा कि आईसीयू चलेगा या नही, स्वछंद कार्यशैली मेरे जनपद में नही- डीएम
तीन भर्ती परीक्षाओं की बदली गई तारीख, जानिए अब कौन सी तिथि पर होंगी ये परीक्षाएं 
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच टी20 सीरीज का दूसरा मुकाबला आज 
यूसीसी के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए चार सदस्यीय समिति के गठन को राज्यपाल ने दी स्वीकृति
अजय देवगन की फिल्म ‘नाम’ का ट्रेलर रिलीज, अपने अतीत की तलाश में निकले अभिनेता
11 नवंबर को सचिवालय में कूच करेंगे उपनल कर्मचारी, राज्य निगम कर्मचारी महासंघ ने दिया समर्थन
अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला- “पहले बोरी में चोरी, अब बोरी ही गायब”
फिट रखने में सहायक है लेटरल बैंड वॉक, जानिए इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें  
“युवा महोत्सव” का रंगारंग आगाज, मुख्यमंत्री धामी संग खेल मंत्री रेखा आर्या ने किया शुभारंभ

देश में फैल रही बदहाली

एनएसएसओ की गैर कंपनी यानी अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार की स्थिति के बारे में सर्वे रिपोर्ट आई है। उस रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 से 2022-23 के बीच इस क्षेत्र में 13 राज्यों में रोजगार प्राप्त मजदूरों की संख्या गिरी।

भारत के रोजगार की हालत खराब है, लेकिन यह बदहाली सिर्फ औपचारिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। अनौपचारिक क्षेत्र में हालत बदतर है। चूंकि यह तथ्य नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण से सामने आया है और इसलिए सरकार इससे इनकार नहीं कर सकती। जैसाकि भारत सरकार ने सिटीग्रुप रिसर्च की एक अध्ययन रिपोर्ट के मामले में किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जीडीपी सात प्रतिशत की दर से भी बढ़ती रहती है, तब भी भारत बेरोजगारी की समस्या हल नहीं कर पाएगा। इसलिए सिटीग्रुप की सलाह है कि भारत सरकार सिर्फ ग्रोथ रेट के भरोसे ना बैठी रहे, बल्कि रोजगार बढ़ाने वाले उपायों पर विशेष और अलग से ध्यान दे। मगर यह रिपोर्ट आने के तुरंत बाद सरकार ने इसका खंडन कर दिया। उसने दावा किया कि 2017-18 से 2021-22 के बीच आठ करोड़ रोजगार पैदा किए गए हैँ। बहरहाल, अब एनएसएसओ की गैर कंपनी क्षेत्र में रोजगार के बारे में सर्वे रिपोर्ट आई है।

ये रिपोर्टें 18 राज्यों के उन कारोबार से संबंधित हैं, जिनका कंपनी कानून के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया है। यानी ये छोटे कारोबार हैं और अनौपचारिक क्षेत्र का हिस्सा हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 से 2022-23 के बीच इस क्षेत्र में 13 राज्यों में रोजगार प्राप्त मजदूरों की संख्या गिरी। कर्नाटक और तमिलनाडु दो ऐसे राज्य रहे, जहां ऐसे रोजगार में सबसे ज्यादा गिरावट आई। वहां यह गिरावट क्रमश: 13 लाख और 12 लाख रही। अगर ध्यान दें, तो यह वही अवधि है, जब नोटबंदी, जीएसटी लागू होने और फिर कोरोना महामारी के दौरान अनियोजित लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ी थी। यह बात ध्यान में रखने की है कि अनौपचारिक में मौजूद रोजगार अस्थायी किस्म का होता है, जहां मजदूर कम वेतन और बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के काम करते हैं। अगर ऐसी जगहों पर भी काम के अवसर घटे हैं, तो समझा जा सकता है कि क्यों देश में रोजमर्रा का न्यूनतम उपभोग भी घटता चला गया है। जाहिर है, इससे देश में फैल रही बदहाली को समझने के सूत्र भी मिलते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top