Breaking News
पब्लिक रिलेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के सदस्यों ने स्वास्थ्य सचिव से की भेंट
पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार दाखिल किया नामांकन
आईपीएल 2024- दिल्ली कैपिटल्स और लखनऊ सुपर जायंट्स के बीच मुकाबला आज 
उत्तराखंड सरकार ने पिछले अनुभवों से भी नहीं लिया कोई सबक – राजीव महर्षि
बाबा केदारनाथ के दर्शन को पहुंचे पर्यटन- धर्मस्व सिंचाई लोकनिर्माण मंत्री सतपाल महाराज
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का निधन, आज शाम राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार
सीएम धामी ने पालघर से भाजपा प्रत्याशी डॉ हेमंत विष्णु सवरा के समर्थन में आयोजित जनसभा में किया प्रतिभाग 
2023 में यमुनोत्री धाम पहुंचे थे सबसे ज्यादा 12045 श्रद्धालु, तो इस बार 12148 पहुंची संख्या
लाल केला खाना होता है स्वास्थ्य के लिए लाभदायक, जानिए कैसे है पीले केले से अलग

अंबानी-अडानी, खरबपतियों का चंदा कहां?

हरिशंकर व्यास
कैसी हैरानी की बात है कि मोदी राज में सबसे ज्यादा धंधा खरबपतियों का बढ़ा। अडानी जगत सेठ हुआ। अंबानी कुबेरपति हुआ। पैसे से भारत की संस्कृति का ढिंढोरा करता है। इनके साथ टाटा, बिड़ला सहित टॉप के बीस खरबपति दिन-दुनी, रात-चौगुनी की रफ्तार से भारत के लोगों से पैसा कमाते हुए हैं लेकिन वे इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीददारों की लिस्ट से लगभग गायब। यों कुछ जानकार शेल याकि खोखा कंपनियों से बॉन्डस लेन-देन की बारीकी तलाश रहे हैं। लेकिन मोटा मोटी मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में जुआरियों, सटोरियों, काला बाजारियों और ठेकेदारों से ही चुनाव और राजनीति के नाम पर वसूली हुई दिखती है। और यह हैरानी की बात है।

तभी अपना सवाल है कि सरकारी प्रोजेक्टों और मुंबई, दिल्ली आदि महानगरों के ठेकेदारों, बिल्डरों की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदने-देने के साथ सौदेबाजी का यदि सीक्वेंस है तो भला विनिवेश, खान आवंटन से लेकर अंतरराष्ट्रीय सौदों, खरीद-फरोख्त के खरबपतियों के कारोबार की वसूली का क्या रूप है? जब चिंदीमार, खोखा कंपनियों को ईडी, सीबीआई, आईटी से लाइन हाजिर करा वसूली हुई है तो खरबपतियों के लेवल का चंदा कहां गया? क्या इस रीति-नीति पर चला गया कि छोटे कारोबारी भाजपा पार्टी के लिए और वैश्विक खरबपति किसी और काम के लिए?

भला और क्या काम हो सकता है? आप ही अनुमान लगाएं। लुटियन दिल्ली में जितने मुंह उतनी बात है। मगर इतना तय है कि भारत के टॉप सौ अरबपतियों की कंपनियों में बिना इलेक्टोरल बॉन्ड्स के कई नाम निकल आएंगे। और फिर यदि इनकों नौ वर्षों में मिली सरकारी कंपनियों, विनिवेश, लाइसेंसों की पूरी सूची के साथ तुलना करें तो वह क्या आंख खोल देने वाली नहीं होगी?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top