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विपक्ष भले मरा हो पर वोट ज्यादा

हरिशंकर व्यास
भारत के लोकतंत्र का अभूतपूर्व तथ्य है जो 1952 से अभी तक के लोकसभा चुनावों में कभी भी, किसी भी सत्तारूढ़ पार्टी को 50 प्रतिशत पार वोट नहीं मिले। पचास प्रतिशत करीब के 48 प्रतिशत वोट का रिकॉर्ड केवल राजीव गांधी के 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का है। तब कांग्रेस को 48 प्रतिशत वोट और 415 सीटें मिली थी। इंदिरा गांधी की हत्या पर जन सहानुभूति में 64 प्रतिशत मतदान था। और कांग्रेस को 48 प्रतिशत वोटों वाला जनादेश। जबकि मालूम है नरेंद्र मोदी के 2014 तथा 2019 के चुनाव में भाजपा को कुल कितना वोट मिला? सन् 2014 में 31 प्रतिशत वोट व 282 सीटें वहीं 2019 में 37.7 प्रतिशत वोट और 303 सीटे। कांग्रेस की सरकारों के 1952, 1957, 1962, 1967, 1971, 1980, 1984 के जनादेश से निर्मित नेहरू, इंदिरा, राजीव का प्रधानमंत्री पद हमेशा 41 से 48 प्रतिशत वोटों पर था। इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में कांग्रेस हारी थी। तब वह 35 प्रतिशत वोट और 154 सीटों पर सिमटी थी। नरसिंह राव, डॉ. मनमोहन सिंह की अल्पमत सरकारें जरूर कांग्रेस के 36 और 27-29 प्रतिशत वोट आधार की थीं।

उस नाते 2014 में अच्छे दिनों की हवा के 31 प्रतिशत और 2019 की पुलवामा व छप्पन इंची छाती की आंधी में कुल 37.7 प्रतिशत वोटों का नरेंद्र मोदी का जनादेश भारत के चुनावी इतिहास का एक सामान्य-मामूली आंकड़ा है। तभी लाख टके का सवाल है कि 400 सीटों के हल्ले में भी क्या भाजपा चालीस प्रतिशत वोट पाने का सामान्य आंकड़ा भी पा सकेगी? नेहरू के कार्यकाल के औसत 46 प्रतिशत, इंदिरा गांधी के 42.3 और राजीव गांधी के 48 प्रतिशत वोटों के जनादेश का रिकॉर्ड क्या नरेंद्र मोदी 2024 में तोड़ रहे हैं? नामुमकिन है। भाजपा विपक्ष की फूट से सीटें भले अच्छी पा ले लेकिन भारत के कुल मतदाताओं में नरेंद्र मोदी के लिए ठप्पा लगाने वाले 40 प्रतिशत लोग भी शायद ही हों। मोदी के विरोधियों के 60 प्रतिशत वोट होंगे ही होंगे।

सीट संख्या के मामले में भाजपा की एक्सट्रीम हवा का हिसाब लगाए हुए हूं। मतलब यह कि रामजी की जब हवा है तो यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छतीसगढ़, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, जम्मू क्षेत्र, गोवा, दादर-दमन की 204 सीटों में हर सीट भाजपा की झोली में। बावजूद इससे 400 पार सीटों का आधार नहीं बनता। दूसरी कैटेगरी में मुकाबले वाले महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, असम की 207 सीटों का ब्लॉक है। इसमें क्या भाजपा 2019 जितनी यानी 113 सीटें वापिस जीत सकेगी? कतई नहीं। विपक्ष के गढ़ के नाते फिलहाल तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पंजाब की 115 सीटों में भाजपा की दाल नहीं गलनी है। उत्तर-पूर्व, लक्षद्वीप, अंडमान जैसे छोटे-छोटे राज्यों की बाकी 19 सीटों का ब्लॉक मोटा मोटी लुढक़ता लोटा है। जाहिर है इस बार 400 पार की भाजपा हवाबाजी सिरे नहीं चढ़ेगी।

सवाल है इस चुनावी तस्वीर में 400 सीटें आसान हैं या 273 सीटों के लिए भी मुकाबला है? नोट रखें 400 सीटों के हल्ले के पीछे और मोदी-शाह की सारी जोड़-तोड़ के पीछे का मकसद जैसे-तैसे 273 से पार और 300 सीटों का आंकड़ा पा कर लाज बचाने का है। नरेंद्र मोदी जानते हैं कि दस साल की एंटी इन्कमबैंसी जीतना कितना मुश्किल होता है और मंदिर की हवा, हिंदू-मुस्लिम, तमाम तरह की जुमलेबाजी, नौटंकियों-झांकियों के बावजूद यूपी में न अस्सी की अस्सी सीटे जीती जा सकती है और न महाराष्ट्र में यूपी जैसी भगवा हवा बन सकती है। और यह भी नोट रखें कि नरेंद्र मोदी से चुनाव में विपक्ष लड़ता हुआ नहीं होगा, बल्कि जनता वोट देते हुए होगी क्योंकि भारत के लोकतंत्र की खूबी है जो 52 से 61 प्रतिशत वोट हमेशा सत्ता के खिलाफ वोट देता आया है और यह अलग बात है कि वह हमेशा विपक्ष की फूट से बिखरा रहा है।

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